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23 June 2020

लदाख :-कल से आज तक

हाल में भारत और चीन की सीमा को लेकर विवाद चल रहा है उसी के बारे में डीप में जानने के लिए हम लद्दाख की History के बारे में जानेंगे 


क्या है लद्दाख की History 

लद्दाख के सीमा विवाद का एक बहुत ही लंबा बैकग्राउंड है जो पिछले 50 सालों के इतिहास  से नहीं बल्कि 1500 सालों के इतिहास को खंगालने से पता चलेगा, पूरी बात जानकर ही आप ये बता सकते है की क्या सही है और क्या गलत। 

लद्दख कि भुमि बनवत और रहन सहन :-

भारत के सबसे उत्तरी छोर पर स्थित है,  नीचे दी गई कुछ फोटोज में आप लद्दाख कि वस्त्विक्त  ज्योग्राफिकल स्तिथि समझ सकते है  ।


बेसिकली लद्दाख एक ट्रांस हिमालयन (हिमलय के पर का ) रीजन है जहां पर बारिश ना के बराबर होती है। तो अगर आपके दिमग मे ये चल रहा है के वहा हरे भरे पहाड़ होंगे , चारो तरफ बर्फ होगी , हरे भरे पहाड़ हरे भरे पेड़ पौधे होंगे, तो सब भूल जाएये , ऐसा कुछ नहीं है यहां का मौसम  बहोत ठंडा और ड्राई होता है यह  एक तरीके का cold Desert है. |


























- लद्दाख शब्द का मतलब होता है Land Of High Passes  इसका मतलब है कि इन माउंटेन Passes को पार करके ही दूसरी तरफ जाया जा सकता है|.

- लद्दाख के हमेशा से सुरक्षित रहने का यही कारण है क्योंकि इन दर्रो  या घाटियों को या Valley   को पार कर पाना  बड़ा ही मुश्किल , बहुत ही  जोखिम
    भरा काम होता है। 

- सर्दियों में तो इन्हें बिल्कुल भी क्रॉस नहीं किया जा सकता लेकिन गर्मियों में काफी मशक्कत के बाद पार जाया जा सकता है। 

- लद्दाख का एवरेज एल्टीट्यूड 11000 फीट से भी ऊंचा है यहां के कुछ पास एस 15०००  से 18000 फीट तक ऊंचे हैं। 

- सर्दीयो  में यहाँ पहाड़ों में जमकर बर्फ गिरती है और यही बर्फ गर्मियों में जब पिघलना शुरू होती है तो उससे नदियों का जन्म होता हैं और इन्हीं नदियों के
     किनारे घाटी में कुछ गांव बास्ते हैं जहां थोड़ी बहुत खेती होती है  और लोग अपना जिवनयपन करते है,  जिसके लिए इन नदियों के पानी का  प्रयोग किया जाता  है। 

6- यहां की ज्यादातर आबादी इन  नदियों द्वारा बनी घाटियों में रहती है, पहाड़ों पर भी कुछ लोग 2-4 ya 10  घर के लोग से बने गाव मे रहते हैं इसलिए यह के  क्षेत्रो के ज्यादातर नाम ऐसे होते है जैसे गल्वन रिवर  श्योक रिवर, और ज्यदा तर गाव इन नदियो के किनरे हि बस्ते है और पहाड़ों में बसावट बहुत कम होती है छोटे-छोटे गांव में जिसमें 8-10 घर होते होंगे lekin ज्यादातर आबादी इन घाटियों में रहती है|

 

7- लद्दाख शब्द का मतलब होता है लैंड ऑफ़ हाई पासेस इसका मतलब है कि इन माउंटेन पासेस को पार करके ही दूसरी तरफ जाया जा सकता है और लद्दाख हमेशा से सुरक्षित इसलिए है क्योंकि घाटियों को या valley को पार करना बड़ा ही मुश्किल और  बहुत जोखिम भरा होता है।  सर्दियों में तो इन्हें बिल्कुल भी क्रॉस नहीं किया जा सकता लेकिन गर्मियों में काफी मशक्कत के बाद पार जाया जा सकता है  लद्दाख का एवरेज एल्टीट्यूड 11000 फीट से भी ऊंचा है यहां के कुछ पास 15 से 18000 फीट तक ऊंचे हैं

जैसा कि आप सब लोग जानते हैं कि  जम्मू कश्मीर राज्य  अब 2 यूनियन टेरिटरीज में बट चुका है
1-जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी और
2- लद्दाख यूनियन टेरिटरी
लद्दाख यूनियन टेरिटरीज में दो जिले हैं लेह और कारगिल जिला,  इस यूनियन टेरिटरीज का कैपिटल लेह है,
लद्दाख के पड़ोसियों में इसके

  •       पुर्व में तिब्बत स्थित है
  •       पश्चिम में जम्मू एंड कश्मीर है,
  •        उत्तर में गिलगित बल्तिस्तन क्षेत्र है
  •        उत्तर-पुर्व  में चाइना का जिनजियांग स्थित है और इसके
  •         दक्षिण में हिमाचल प्रदेश राज्य है

इतिहास में तिब्बत की महत्ता हमेशा से रही है क्योंकि  वह सिल्क रूट के बिल्कुल बीचोबीच स्थित है।  लद्दाख सिल्क रूट का एक महत्वपुर्न पास है जो चारों तरफ अलग-अलग रीजन को जोद्ता है  जिसके एक तरफ
•        उत्तर से सेंट्रल एशिया ,
•        पश्चिम हिस्सा यूरोपीयन कंट्रीज
•        दक्षिण तरफ भारत है और
*       पुर्व मे तिब्बत स्थित है।
इस तरीके से तिब्बत , लद्दाख के रास्ते पूरी दुनिया से जुड़कर कोई भी ब्यापार कर सकता है। एक्साम्प्ले के तौर पर, 

कश्मीर हमेशा से पशमीना शॉल या पशमीना प्रोडक्ट के लिए फेमस रहा है, इन प्रोडक्ट को बनाने के लिए जिन भी सामनो की आवश्यकता होती है  वह तिब्ब्त से लद्दाख के रास्ते कश्मीर आता था।  पशमीना wool का  हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण व्यापार रहा है जिसके लिए बहुत सारी लड़ाइयां भी हुई हैं देखा जाए तो लद्दाख की इम्पोर्टेंस व्यापर के हिसाब से भी काफी महत्वपूर्ण है। 

अगर हम लद्दाख के पिछले  1500 साल पहले की इतिहास को देखें तो 1500 साल पहले यानी पांचवी छठी शताब्दी में उस समय तिब्बतियन साम्राज्य बहुत ज्यादा शक्तिशाली था और इसका लद्दाख क्षेत्र पर अधिकार था ऑलमोस्ट पूरा सेंट्रल एशिया तिब्बत के अधीन था उस समय तिब्बत बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली राज्य में से एक था लेकिन जैसा अक्सर हमेशा होता रहा है एक समय ऐसा आता है जब बड़े से बड़ा राज्य बिखर जाता है और ऐसा ही तिब्बत के साथ हुआ।

842 में तिब्बत के राजा लांगधर्मा को मार दिया जाता है और इसके बाद पूरा तिब्बतियन एंपायर अलग-अलग टुकड़ों में बिखरने लगता है लेकिन यह पूरा एंपायर इतना शक्तिशाली और इतना विशाल था की इसको टूटने में 100- 200 साल लग गए जिसे  इरा ऑफ फ्रेगमेंटेशन ऑफ तिब्बत कहा जाता है। 

         तिब्बत के इन छोटे छोटे राज्यों में एक राज्य था  मरयूल ,
         950 के आसपास मरयूल राज्य की स्थापना हुई और इस राज्य ने,  हमारा जो लद्दाख हिस्सा है और तिब्बत का जो पश्चिमी हिस्सा है इस को अपने कंट्रोल में ले लिया। 
         मरयूल राज्य के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह तिब्बत के राज्य परिवार के किसी सदस्य द्वारा स्थापित किया गया राज्य था इसलिए मरयूल का ऐतिहासिक , culturally Tibet ke sath bahut hi Gehra संबंध रहा /  समय बीतने पर इस मरयूल क्षेत्र को लद्दाख का नाम दे दिया गया / मरयूल के बॉर्डर हमेशा से फ्लकचुएट होते रहें क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में बिल्कुल स्पेसिफिक बॉर्डर खींच पाना संभव नहीं होता  है,  माउंटेन रेंजेस को ही बॉर्डर मान लिया जाता है जैसे-जैसे टाइम बढ़ता है बॉर्डर चेंज होते रहते हैं |
         मरयूल और मरयूल के बाद की dynasty/सभ्यता में  तिब्बत का प्रभाव हमेशा रहा है क्युकी यहां का बौद्ध धर्म , लैंग्वेज, कल्चर, पॉलिटिक्स लगभग हर चीज तिब्बत को फॉलो करती रही है या तिब्बत की रही है जिसके कारण तिब्बत का लगभग 1000 साल तक लद्दाख पर प्रभाव रहा है। 
        समय के साथ साथ मरयूल किंग्डम भी कमजोर पड़ गया और लगभग ५०० सालो बाद  1460 से एक नई डायनेस्टी पावर में आ गई जिसका नाम था नामग्याल डायनेस्टी

नामग्याल सभ्यता (1460 से 1842 तक)

* मरयूल किंगडम के अंत में यह राज्य भी छोटे-छोटे अन्य राज्यों में विघटित होने लगा था लेकिन नामग्याल डायनेस्टी ने बहुत सारी लड़ाइयां लड़ी और इन छोटे-छोटे राज्यों को फिर से जीत कर के एक किया और एक पावरफुल किंगडम का रूप दिया ,
* नामग्याल ने लद्दाख रीजन में लगभग 400 सालों तक राज्य किया ,
* नामग्याल वंश के राजाओं ने ही लेह में एक शानदार पैलेस बनवाया जो आज भी स्थित है जिसको शहर के हर कोने से देखा जा सकता है जो कि 9 मंजिला पैलेस है और एक ऊंची पहाड़ी पर बनवाया बनाया गया है। 

जब नामग्याल डायनेस्टी पावर में थी तब 16th Century में उत्तरी भारत में मुगल वंश का शासन हो गया। 
* 1586 में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया और मुगल और नामग्याल बिल्कुल पड़ोसी हो गए। 
* अकबर के समय से ही लद्दाख में मुगल डायनेस्टी की तरफ से प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की गई हालांकि मुगल सैनिक कभी भी लद्दाख को डायरेक्टली जीतने की कोशिश नहीं करी और ना ही अपनी किंगडम में मिलाने की कोशिश करी , जिस का Main कारण था यहाँ का   पहाड़ी रीज़न और वहां पर आर्मी भेजना आसान नहीं था किसी भी तरीके का campaign चलाना बड़ा ही मुश्किल था।  
* इसलिए लद्दाख के पडोसी उससे एक बॉर्डर लैंड की तरह ट्रीट करते थे और हमेशा एक सफल बनाने की कोशिश करते थे और ऐसा ही मुगल्स ने भी किया
* लेकिन जब लद्दाख को तिब्बत के खिलाफ युद्ध  में जरुरत  पड़ी तब  मुगल आर्मी ने उनकी मदद की (1679 - 84 ) जो कि औरंगजेब का समय था। 
* 18 वीं सदी का अंत होते-होते मुग़ल एंपायर पूरी तरीके से कमजोर हो गया  था और उत्तर भारत में सिख एंपायर ज्यादा पावरफुल हो रहा था। 

  लदाख में सिख समुदाय :-

महाराजा रंजीत सिंह के नेतृत्व में सिख एंपायर 1819 तक कश्मीर को जीत चुका था उसके बाद वह लोग लद्दाख की तरफ बढ़े ,
* लद्दाख को जीतने की जिम्मेदारी जम्मू क्षेत्र के गुलाब सिंह जामवाल को दी गई। 
(महाराजा गुलाब सिंह जमवाल (1792-1857) शाही डोगरा राजवंश के संस्थापक और जम्मू और कश्मीर की रियासत के पहले महाराजा थे,)
*  गुलाब सिंह ने लद्दाख को जीतने की जिम्मेदारी अपने जनरल जोरावर सिंह कहलुरिया  (1784-1841) को दिया,
 (जोरावर सिंह कहलूरिया भारतीय उपमहाद्वीप में सिख साम्राज्य के एक डोगरा जनरल थे। वह डोगरा शासक गुलाब सिंह के अधीनस्थ था, जो सिख सम्राट रणजीत सिंह का जागीरदार था।)
*  जोरावर सिंह का नाम लद्दाख के इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगा क्योंकि उन्होंने मात्र 5000 सैनिकों के साथ लद्दाख पर जीत हासिल की और 400 साल से चले आ रहे नामग्याल वंश को 1835 में खत्म कर दिया गया |
 * 1840 तक लद्दाख और बालटिस्तान दोनों पर डोगरा शासन लागू हो गया जो सिखों के  अंडर आते थे।
*  इस तरीके से गुलब सिंह जामवाल तिब्बत का डायरेक्ट पड़ोसी बन गया। 
*  तिब्बत पर उस समय चाइना का रूल था, 
*  चाइना एक इंपीरियल पावर था जो Qing dynasty के अंदर था। 
*  उस समय तक Qing dynasty  तिब्बत को जीत चुकी थीं  तो अब तिब्बत और चाइना एक तरफ थे और दूसरी तरफ tha सिख/ डोगरा

 जोरावर सिंह को लगा ऐतिहासिक तौर पर लद्दाख तो काफी बड़ा हुआ करता था तो हम इतने से क्षेत्र से संतुष्ट क्यों हो जाए क्यों ना हम और आगे जाएं और इस पूरे पश्चिमी तिब्बत को अपना लें जीससे फायदा यह होगा कि यह पूरे  ट्रेड का हिस्सा हमारे कंट्रोल में आ जाएगा जिससे पशमीना प्रोडक्ट्स पर तिब्बत का कोई रूल नहीं रहेगा और वह सीधे हमारे अंदर में आ जाएगा जिसका सीधा फायदा हमें मिलेगा। 
*  यही सोच लेकर जोरावर  सिंह Leh से निकलकर west तिब्बत की तरफ चल पड़ा और इन्होंने अपना कैंपेन मानसरोवर तक पहुंचा दिया लेकिन फिर
*  तिब्बत  की राजधानी लासा से जोरावर सिंह को रोकने के लिए एक आर्मी भेजी गई , जिससे सीख और तिब्बतन आर्मी के बीच में 1841 में  Sino Sikh war हुवा
* यहां जोरावर सिंह का कैंपेन सर्दियों में बर्फबारी की वजह से रुक गया और तिब्बतन आर्मी द्वारा इनको १८४१ में मार दिया गया और यह कैंपेन यहीं खत्म हो गया |

* लेकिन तिब्बतन आर्मी यहां नहीं रुकी वह आगे बढ़ती गई और लेह तक पहुंच गई
* लेकिन जब लेह पहुंची तो इसका सामना डोगरा द्वारा भेजी गई दूसरी फौज से हुआ जिसने तिब्बतन आर्मी को परास्त कर दिया और
* उस समय इन दोनों के बीच  1842 में एक संधि हुई जिसे  ट्रीटी ऑफ Chushul कहा जाता है।
*  यह संधि सिख  एंपायर और तिब्बत के बीच हुई जिसने एक बाउंड्री की रूपरेखा तैयार की गई। 
*  इस संधि में यह तय किया गया की लड़ाई के पहले जो भी स्थिति थी जो भी बाउंड्री थी हम फिर से वही पहुंच जाएंगे या अर्थात पश्चिमी तिब्बत पर सिख अपना कब्जा नहीं करेगा और दोनों एक दूसरे के इंटरनल मामले में दखल नहीं देंगे और ना ही एक दूसरे के ऊपर अटैक करेंगे |
*  लेकिन 4 साल बाद एंगलो सिख वर में 1845-46 Anglo-sikh war mein अंग्रेजों ने सिखों को हरा दिया और जम्मू-कश्मीर अंडर डॉगरा एंपायर ब्रिटिश में आ गया। 
* डोगरा डायनेस्टी ने ब्रिटिश गवर्नमेंट के साथ डील कर ली और गुलाब सिंह ने ₹7500000 में कश्मीर को ब्रिटिश से खरीद लिया और अपने आप को कश्मीर का किंग मना लिया।
*   इस तरीके से दुनिया में पहली बार कोई फॉर्म लेह  तक पहुंचे, उससे पहले लद्दाख तक पहुंचना एक बहुत बड़ी चुनौती माना जाता था, उसके बाद ब्रिटिश और यूरोपीयन कंट्रीज का आना जाना बढ़ गया |
* ब्रिटिशर्स ने यहाँ पर कई

  • ·         एक्सपेडिशन्स (सैनिक कार्यवाही)भी भेजी।
  • ·         यहां का मैप बनाने की कोशिश की गई ,
  • ·         बाउंड्री बनाने का प्रयास किया गया,
  • ·         कार्टोग्राफी को भेजा गया लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। 

* पहली कोशिश 1865 में की गई Jo Sar Johnson dwara ki Gai thi जिस पर भारत आज भी अपना क्लेम मानता है लेकिन
* १८७३  में ब्रिटिश ने एक बार फिर से एक और बॉर्डर खींचने का प्रयास किया गया जिसको कोई नहीं मानता जिसमें लद्दाख का कुछ रीजन चला गया जिसको ना तो भारत मानता है और ना ही चाइना
* ,1897 मे  Macartney–MacDonald Line जिसमें अक्साई चीन वाला पूरा एरिया तिब्बत में चला जाता है जिसको पहले चाइना मान लेता था लेकिन बाद में चाइना ने इस को मानने से मना कर दिया और वह पूरा गलवान वैली तक का एरिया को   अपने हक का मानता है। 
* 1947 में भारत आजाद हो जाता है और
* 1949 में पीपल रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना भी हो गई,  तिब्बत बाद में चाइना का हिस्सा बन गया और लद्दाख भारत के एडमिनिस्ट्रेशन में आ गया तो
* यह लद्दाख और तिब्बत के बीच का जो बॉर्डर अब भारत और चीन का बॉर्डर बन गया। 
*  भारत कहता है कि जॉनसन लाइन द्वारा भारत का बॉर्डर  मार्क किया गया है। 
*  चाइना कहता है हमने कभी भी जॉनसन लाइन या Macartney–MacDonald Line को नहीं माना।
*  1914 में अंग्रेजों ने तिब्बतन के साथ सौदा किया लेकिन रिपब्लिक ऑफ चाइना बाद में इस बात से इनकार कर दिया क्योंकि तिब्बत अब चाइना का हिस्सा था , वो कहता है तिब्बत को ऐसा कोई समझौता करने का कोई हक़ नहीं  था।
* 1950 के दशक में चाइना का लद्दाख में इंटरेस्ट बढ़ता गया क्योंकि चाइना ka मानना hai ki लद्दाख तिब्बत का हिस्सा था तो अभी भी हमारा हिस्सा है। 
*  तिब्बत में एक विद्रोह के दौरान चाइना ने अपनी फौज तिब्बत भेजी जिसमें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत आना पड़ा  जिसके बाद भारत और चाइना के रिश्ते और खराब हो गए
* बाउंड्री का विवाद चल ही  रहा था। 
* 1961 में जवाहरलाल नेहरू ने चीन से   बातचीत करके इसको सुलझाने की कोशिश की लेकिन बातचीत से बात  सुलझी नहीं बल्कि चाइना ने चोरी चुपके एक रोड बनाना शुरू कर दिया
*  जिसमें जिनजियांग और तिब्बत को जोड़ने के लिए एक रोड बनाया जो भारत की बाउंड्री से होकर गुजरती थी जिसके बारे में भारत की सरकार को कानों कान खबर भी नहीं हुई
* 1956-57 में  रोड बनवाई गई थी और भारतीय गवर्नमेंट को इसका पता 1958 last  में चला, jab चाइना ने अपना ऑफिशियल मैप प्रकाशित किया और उसमें  चाइना की उस रोड का पता चला जो भारत के बॉउंड्री से गुजर रही थी। 
* भारत में इसको लेकर काफी बवाल हुआ और उस समय की मौजूदा सरकार से सवाल जवाब किए गए,
* उस रोड को लेकर हमारे प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी ने लोकसभा में एक बहुत फेमस स्टेटमेंट दिया कि " जो सड़क बनी है ईस्टर्न और नॉर्थ नॉर्थ ईस्टर्न लद्दाख का एरिया है जो प्रैक्टिकली इन्हेबिटेड है जहां पर कोई भी नहीं रहता जो अक्साई चीन नाम का एरिया है जहां पर लद्दाख के लोग गर्मियों में अपने जानवरों को घुमाने या चराने ले जाया करते हैं " जवाहरलाल नेहरू का स्टेटमेंट बहुत ही गलत था जिसको दुनिया भर में क्रिटिसाइज किया जाता है उसके बाद * 1962 की लड़ाई हुई जिसमें चाइना ने गलवान का पूरा एरिया कब्जा लिया लेकिन बाद में कुछ पीछे हट गया
* 1962 के बाद इस क्षेत्र में 2019 में एक बहुत ही important  डेवलपमेंट  हुआ जब भारत में जम्मू कश्मीर राज्य का स्पेशल स्टेटस धारा 370 को हटा दिया और लद्दाख को यूनियन टेरिटरीज घोषित कर दिया ,
* लद्दाख को यूनियन टेरिटरी घोषित किया गया तो दुनिया के सामने यह संदेश गया कि भारत पूरे लद्दाख को अपना ही मानता है हमारा क्लेम वहां पर बिल्कुल ही सटीक है
* चाइना पर इस पर कुछ ना कुछ रिएक्शन आना भी प्रेडिक्टेड था ऐसा कोई सिक्योरिटी एनालिसिस का मानना है मई 2020 में चाइना ने यहां पर कुछ गतिविधियों को तेज कर दिया और अभी गलवान वल्ली के पुरे हिस्स्से को अपना बताता है और पीछे हटने को तैयार नहीं है

इसी बीच हमारे प्रधानमंत्री जी  ने एक  स्टेटमेंट दी की "न तो कोई हमारी सरहद में कोई घुसा है और न ही  हमारी किसी जमीन पर किसी का कोई कब्ज़ा है, "
जिसका सीधा सीधा मैसेज ये जाता है की क्या हम नार्थ-ईस्ट लदाख को जिसकी सीमा रेखा सर जोंसन लाइन को आधार मानती है को हम  अपना हिस्सा नहीं मानते।  या १९५९ में जैसा नेहरू जी ने स्टेटमेंट दिया था ये भी कुछ वैसा ही है, जिसमे उन्होंने चीन द्वारा बनाई जा रही  सड़क को लेकर एक बड़ा ही कासुअल स्टेटमेंट दिया था , जिससे ये लग रहा  था की यदि चीन  उस एरिया को यदि अपना भी लेता है तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। 
खैर ये तो अभी डेवलपिंग कंडीशन है आगे क्या निष्कर्ष निकलता है देखते है।  तो यह थी पूरी लद्दाख की हिस्ट्री अभी इसपर क्या डिसिशन आता है आगे पता चलेगा।





current situation:-





Summary:-
  • 842 तक लदाख तिब्बत का हिस्सा था। 
  • 842 से  लगभग 950  तक तिब्बत छोटे छोटे राज्यों में टूटता रहा। 
  • लगभग 930 में तिब्बत के उन छोटे हिस्सों में से एक राज्य था  मरयूल राज्य, जिसके संस्थापक थे  "Lhachen Palgyigon" । 
  • जो कश्मीर की सीमा पर ज़ोजी ला से दक्षिणपूर्व में डेमचोक तक फैला था , इसमें रुतोग और तिब्बत में मौजूद अन्य क्षेत्र शामिल थे।
  •  1460 से 1842 तक ये किंगडम नामग्याल बंश के हाथो में  रहा। 
  • 1835 के आस-पास  डोगरा जनरल जोरावर सिंह ने नामग्याल  पर विजय प्राप्त करते हुए, इसे जम्मू और कश्मीर की रियासत का हिस्सा बना दिया। 
  • 1841 में मानसरोवर लेक के पास तिब्बत की राजधानी लासा से आयी सेना द्वारा जोरावर सिंह को मार दिया जाता है (Sino Sikh war ) और तिब्बती सेना लदाख के लेह तक पहुंच जाती है। 
  • लेकिन जब लेह पहुंची तो इसका सामना डोगरा द्वारा भेजी गई दूसरी फौज  तिब्बतन आर्मी को परास्त कर देती है और
  • इन दोनों के बीच  1842 में एक संधि होती है जिसे  ट्रीटी ऑफ Chushul कहा जाता है।
  • 4 साल बाद एंगलो सिख वर में 1845-46  अंग्रेजों द्वारा  सिखों हार  होती है  और जम्मू-कश्मीर अंडर डॉगरा एंपायर ब्रिटिश गवर्नमेंट में मिल जाता है । 
  •  गुलाब सिंह ने ₹7500000 में कश्मीर को ब्रिटिश से खरीद लेते है और अपने आप को कश्मीर का किंग बना लेते है ।
  • ब्रिटिशर्स ने यहाँ पर कई बार लदाख और तिब्बत के बीच बॉउंड्री खींचने का प्रयाश करती है। 
  •  1897 में अर्दघ-जॉनसन लाइन कश्मीर की एक प्रस्तावित सीमा है जो चीनी तुर्कस्तान और तिब्बत को समाप्त करती है।
  • 1899 में मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन, अक्साई चिन के विवादित क्षेत्र में एक प्रस्तावित सीमा है। यह ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा 1899 में चीन में अपने दूत सर क्लाउड मैकडॉनल्ड के माध्यम से चीन को प्रस्तावित किया गया था।
  • The Line of Actual Control (LAC) is a loose demarcation line जो चीन-नियंत्रित क्षेत्र से भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीन-भारतीय सीमा विवाद में अलग करती है। यह शब्द पहली बार झोउ एनलाई ने 1959 में जवाहरलाल नेहरू को लिखे पत्र में इस्तेमाल किया था।
  • 1962  में चीन गलवान वैली तक कब्ज़ा कर लेता है , लेकिन फिर कुछ पीछे हैट जाता है , लेकिन वो गलवान       को अपना हिस्सा बताता है।  और तब से वह अपनी बात को दोहराये जा रहा है। 
  • भारत द्वारा कश्मीर का स्पेशल स्टेटस हटाने से (धारा ३७०) चीन का ये रवैया तो प्रिडिक्टेड था लेकिन देखना है की अब आगे  क्या होता है। 


  • Source of Knowledge
    2:-Study iq :- Mahipal Singh Rathore
    4:- Hindustan Times
    5:-Times of India

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